Source : Internet
Search
Showing posts with label Tragedy. Show all posts
Showing posts with label Tragedy. Show all posts
Friday, December 04, 2015
Monday, March 04, 2013
One Bedroom Flat...
As the dream of most parents I had acquired a degree
in Software Engineering and joined a company based in USA, the land
of braves and opportunity. When I arrived in the USA, it was as if a dream
had come true.
Here at last I was in the place where I want to be. I decided
I would be staying in this country for about Five years in which time
I would have earned enough money to settle down in India.
My father was a government employee and after
his retirement, the only asset he could acquire was a decent one bedroom
flat.
I wanted to do something more than him. I
started feeling homesick and lonely as the time passed. I used to call
home and speak to my parents every week using cheap international
phone cards. Two years passed, two years of Burgers at McDonald's and
pizzas and discos and 2 years watching the foreign exchange rate getting happy
whenever the Rupee value went down.
Finally I decided to get married. Told my
parents that I have only 10 days of holidays and everything must be done within
these 10 days. I got my ticket booked in the cheapest flight. I was jubilant
and was actually enjoying hopping for gifts for all my friends back home. If I
miss anyone then there will be talks.
After reaching home I spent home one week going
through all the photographs of girls and as the time was getting shorter I was
forced to select one candidate.
In-laws told me, to my surprise, that I would
have to get married in 2-3 days, as I will not get anymore holidays. After the
marriage, it was time to return to USA , after giving some money to my
parents and telling the neighbors to look after them, we returned to USA
.
My wife enjoyed this country for about two
months and then she started feeling lonely. The frequency of calling India increased
to twice in a week sometimes 3 times a week. Our savings started
diminishing.
After two more years we started to have
kids. Two lovely kids, a boy and a girl, were gifted to us by the almighty.
Every time I spoke to my parents, they asked me to come to India so that they
can see their grand-children.
Every year I decide to go to India... But part
work part monetary conditions prevented it. Years went by and visiting
India was a distant dream. Then suddenly one day I got a message that my
parents were seriously sick. I tried but I couldn't get any holidays and thus
could not go to India...
The next message I got was my parents had
passed away and as there was no one to do the last rights the society
members had done whatever they could. I was depressed. My parents had
passed away without seeing their grand children.
After couple more years passed away, much to my
children's dislike and my wife's joy we returned to India to settle
down. I started to look for a suitable property, but to my dismay my savings
were short and the property prices had gone up during all these years. I
had to return to the USA...
My wife refused to come back with me and my
children refused to stay in India... My 2 children and I returned to USA
after promising my wife I would be back for good after two years.
Time passed by, my daughter decided to get
married to an American and my son was happy living in USA... I decided
that had enough and wound-up every thing and returned to India...
I had just enough money to buy a decent 02 bedroom flat in
a well-developed locality.
Now I am 60 years old and the only time I go
out of the flat is for the routine visit to the nearby temple. My faithful
wife has also left me and gone to the holy abode.
Sometimes, I wondered was it worth all this? My father, even after
staying in India, had a house to his name and I too have the same nothing
more...
I lost my parents and children for just ONE EXTRA BEDROOM...
Looking out from the window I see a lot of
children dancing. This damned cable TV has spoiled our new generation and these
children are losing their values and culture because of it. I get
occasional cards from my children asking I am alright. Well at least they
remember me..
Now perhaps after I die it will be the
neighbors again who will be performing my last rights, God Bless them.
But the question
still remains
'Was all this worth it?'
I am still searching for an answer.................!!!
Start Thinking...
- Written by an Indian Software Engineer... (Bitter Reality)
Friday, March 01, 2013
तू बरोबर असतोस तेव्हा...
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
खूप खूप बोलावसं वाटत, नाहीतर फक्त गप्प रहावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुलाच पाहावस वाटत, नाहीतर डोळे मिटून शांत बसावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
खूप खूप हसावसं वाटत, नाहीतर उदास रहावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुझ्याच समोर रडावस वाटत, नाहीतर मनात सगळं दुखं, दाबून ठेवावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
तुझ्याबरोबर पावसात भिजावस वाटत, नाहीतर खिडकीतूनच, पडता पाऊस पाहावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
जगावसं वाटत, नाहीतर जग सोडून जावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुझ्या बरोबरच रहावस वाटत, नाहीतर फक्त तुलाच आठवावस वाटत…
नाहीतर फक्त तुलाच......
आठवावस वाटत…
खूप खूप बोलावसं वाटत, नाहीतर फक्त गप्प रहावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुलाच पाहावस वाटत, नाहीतर डोळे मिटून शांत बसावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
खूप खूप हसावसं वाटत, नाहीतर उदास रहावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुझ्याच समोर रडावस वाटत, नाहीतर मनात सगळं दुखं, दाबून ठेवावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
तुझ्याबरोबर पावसात भिजावस वाटत, नाहीतर खिडकीतूनच, पडता पाऊस पाहावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
जगावसं वाटत, नाहीतर जग सोडून जावस वाटत…
तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुझ्या बरोबरच रहावस वाटत, नाहीतर फक्त तुलाच आठवावस वाटत…
नाहीतर फक्त तुलाच......
आठवावस वाटत…
by unknown
(Note: Video added to this blog, expecting your comments on this, so I'll continue adding Videos to my next blogs)
Tuesday, February 26, 2013
माँ...
एक माँ थी जिसका एक लड़का था, बाप मर चुका था। माँ घरो में बर्तन मांजती थी बेटे को अपना पेट काटकर एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाती थी। एक दिन स्कूल में किसी बच्चे ने उसके लड़के के आँख में पेंसिल मार दी, लड़के की आँख चली गई। डाक्टर ने कहा ये आँख नहीं बचेगी दूसरी लगेगी। तो माँ ने अपने कलेजे के टुकड़े के लिए अपनी एक आँख दे दी।
अब वो देखने में भी अच्छी नहीं थी। बेटा उसको स्कूल आने को मना करता था क्योंकि वो देखने में अच्छी और पढ़ी लिखी नहीं थी ऊपर से एक आँख भी नहीं रही, उसे अपनी माँ पर शर्म आती थी, कभी लंच बॉक्स देने आती भी थी तो मुह छुपा कर और अपने को नौकरानी बताती थी। अपने बच्चे की ख्वाइश पूरी करने को वो दिन रात काम करती लेकिन बेटे को कमी महसूस नहीं होने देती।
अब वो देखने में भी अच्छी नहीं थी। बेटा उसको स्कूल आने को मना करता था क्योंकि वो देखने में अच्छी और पढ़ी लिखी नहीं थी ऊपर से एक आँख भी नहीं रही, उसे अपनी माँ पर शर्म आती थी, कभी लंच बॉक्स देने आती भी थी तो मुह छुपा कर और अपने को नौकरानी बताती थी। अपने बच्चे की ख्वाइश पूरी करने को वो दिन रात काम करती लेकिन बेटे को कमी महसूस नहीं होने देती।
बेटा जवान हुआ, एक सरकारी अधिकारी बना उसने लव मैरिज की। उसने अपनी माँ को भी नहीं बुलाया और अलग घर ले बीबी के साथ रहने लगा माँ बूढी हो रही थी बीमार भी रहने लगी। लेकिन लड़का अपनी पत्नी और हाई सोसाइटी में व्यस्त रहने लगा उसे माँ की याद भी नहीं आती थी।
माँ बीमार रहती लेकिन दिन रात अपने पुत्र की सम्रद्धि और उन्नति के लिए भगवान् से दुआ मांगती रहती कुछ पडोसी माँ का ख्याल रखते। एक बार वो बहुत बीमार पड़ी तो उसने अपने बेटे को देखने की इच्छा जाहिर की लोग लड़के को बुलाने गए तो, वो अपनी बीबी के साथ कहीं टूर पे घुमने जा रहा था वो नहीं आया उसने कुछ पैसे इलाज़ के लिए भेज दिए, लेकिन माँ का इलाज़ तो उसका बेटा था जिसको मरने से पहले देखना चाहती थी उसे प्यार देना चाहती थी, वो फिर भी बेटे का इन्तेजार करती रही, उसके कलेजे का टुकड़ा उसके आशाओं के टुकड़े कर रहा था।
वो आया लेकिन तब तक माँ मर चुकी थी उसके हाथ में एक फोटो था लड़के का वही बचपन की स्कूल ड्रेस बाला फोटो धुन्दला गन्दा सा जिसे हर वक्त सीने से लगाये रहती थी, आज भी सीने से लगाये थी, लेकिन मरते दम तक वो अपने कलेजे के टुकड़े को कलेजे से न लगा सकी।
दिन बीते वक्त बदला लड़के का कार से एक्सिडेंट हुआ इस एक्सिडेंट में उसकी दोनों आँख चली गई चेहरे पर चोट लगने से कुरूप लगने लगा दोनों पैर बेकार हो गए चलने में लचार हो गया। पत्नी अमीर घर की लड़की थी, वो दिनों दिन पति से दूर होने लगी क्योंकि पति अब भद्दा और विकलांग था, और एक दिन वो पति को छोड़ कर चली गई।
तब बेटे को माँ की याद आयी ,की कैसे उसने अपने बेटे के लिए अपनी एक आँख दे दी जीवन के आखरी समय तक वो उसकी फोटो को सीने से लगाये रही, और वो उसको अपनी पत्नी और हाई सोसाइटी के लिए माँ को याद भी नहीं करता था आज ईश्वर ने उसे बता दिया की माँ का प्यार असीम होता है, निस्वार्थ होता है, दुनिया में उससे ज्यादा प्यार करने बाला कोई नहीं ,वो लेटे लेटे यही सोंच रहा था और रो रहा था की ईश्वर ने शायद माँ के प्यार की क़द्र न करने की सजा दी लेकिन शायद माँ स्वर्ग में भी उसकी इस हालत को देख तड़प उठी होगी
वो आया लेकिन तब तक माँ मर चुकी थी उसके हाथ में एक फोटो था लड़के का वही बचपन की स्कूल ड्रेस बाला फोटो धुन्दला गन्दा सा जिसे हर वक्त सीने से लगाये रहती थी, आज भी सीने से लगाये थी, लेकिन मरते दम तक वो अपने कलेजे के टुकड़े को कलेजे से न लगा सकी।
दिन बीते वक्त बदला लड़के का कार से एक्सिडेंट हुआ इस एक्सिडेंट में उसकी दोनों आँख चली गई चेहरे पर चोट लगने से कुरूप लगने लगा दोनों पैर बेकार हो गए चलने में लचार हो गया। पत्नी अमीर घर की लड़की थी, वो दिनों दिन पति से दूर होने लगी क्योंकि पति अब भद्दा और विकलांग था, और एक दिन वो पति को छोड़ कर चली गई।
तब बेटे को माँ की याद आयी ,की कैसे उसने अपने बेटे के लिए अपनी एक आँख दे दी जीवन के आखरी समय तक वो उसकी फोटो को सीने से लगाये रही, और वो उसको अपनी पत्नी और हाई सोसाइटी के लिए माँ को याद भी नहीं करता था आज ईश्वर ने उसे बता दिया की माँ का प्यार असीम होता है, निस्वार्थ होता है, दुनिया में उससे ज्यादा प्यार करने बाला कोई नहीं ,वो लेटे लेटे यही सोंच रहा था और रो रहा था की ईश्वर ने शायद माँ के प्यार की क़द्र न करने की सजा दी लेकिन शायद माँ स्वर्ग में भी उसकी इस हालत को देख तड़प उठी होगी
"माँ" जीवन का अनमोल और निस्वार्थ प्यार है किसी और के प्यार के लिए उसे मत ठुकराना।
Friday, February 22, 2013
"अनाथ"
यहीं कहीं, कहीं गहरे सन्नाटे में, ख़ामोश निगाहों ने कुछ कहना चाहा
लफ्ज न थे जुबान पर, तो बस आँखों ने ही कुछ समजना चाहा ।
नन्हे हाथों ने उंगली थाम चलना चाहा,
नाजुक कदमो ने आगे बढ़ाना चाहा,
रो-रो कर जिद को मनवाना चाहा,
माँ के हाथों से निवाला और बाबा का दुलार चाहा,
बस अपने लिए छोटा-सा आशियाना चाहा ।
लोरी सुन रातों को सोना चाहा,
गलतियों पर फटकार, फिर आँचल में छुपना चाहा,
ममता की धरा मैं बहना, और अमृत को पीना चाहा,
बाबा का हाथ सर पर, और अभिमान से जीना चाहा ।
पर बेखबर थे जिस सच से, दुनिया ने हमें उससे मिलाना चाहा
बस... एक लफ्ज , और जिंदगी ने खुद को कोसना चाहा
जब "अनाथ" कहकर, सबने हमारा दिल दुखाया,
जाने क्यूँ हमें इतना रुलाया, फिर इस दिल ने खुद को तनहा पाया...
और खुद से रूठकर बस...
बस... ख़ामोश रहना चाहा ।
लफ्ज न थे जुबान पर, तो बस आँखों ने ही कुछ समजना चाहा ।
नन्हे हाथों ने उंगली थाम चलना चाहा,
नाजुक कदमो ने आगे बढ़ाना चाहा,
रो-रो कर जिद को मनवाना चाहा,
माँ के हाथों से निवाला और बाबा का दुलार चाहा,
बस अपने लिए छोटा-सा आशियाना चाहा ।
पलको ने छुप-छुप कर सब कुछ कहना चाहा,फिर ना समझ दिल को समझाना चाहा,आंसू पोछ कर मुस्कुराना चाहा,कभी मन मार कर सिसक-सिसक कर रोना चाहा,बस माँ की ममता और बाबा का दुलार चाहा ।
लोरी सुन रातों को सोना चाहा,
गलतियों पर फटकार, फिर आँचल में छुपना चाहा,
ममता की धरा मैं बहना, और अमृत को पीना चाहा,
बाबा का हाथ सर पर, और अभिमान से जीना चाहा ।
उस अहसास को पाना चाहा,
जन्नत मैं जीना चाहा,
खुद को महफूज रखना चाहा,
रूठी माँ को मनाना चाहा,
बाबा के लिए कुछ बनना चाहा ।
पर बेखबर थे जिस सच से, दुनिया ने हमें उससे मिलाना चाहा
बस... एक लफ्ज , और जिंदगी ने खुद को कोसना चाहा
जब "अनाथ" कहकर, सबने हमारा दिल दुखाया,
जाने क्यूँ हमें इतना रुलाया, फिर इस दिल ने खुद को तनहा पाया...
और खुद से रूठकर बस...
बस... ख़ामोश रहना चाहा ।
- by पूनम चौधरी, नासिक
(या कवितेला "Rainbow Youth Festival 2012" मध्ये "First Prize" मिळाले होते। )
Subscribe to:
Posts (Atom)