यहीं कहीं, कहीं गहरे सन्नाटे में, ख़ामोश निगाहों ने कुछ कहना चाहा
लफ्ज न थे जुबान पर, तो बस आँखों ने ही कुछ समजना चाहा ।
नन्हे हाथों ने उंगली थाम चलना चाहा,
नाजुक कदमो ने आगे बढ़ाना चाहा,
रो-रो कर जिद को मनवाना चाहा,
माँ के हाथों से निवाला और बाबा का दुलार चाहा,
बस अपने लिए छोटा-सा आशियाना चाहा ।
लोरी सुन रातों को सोना चाहा,
गलतियों पर फटकार, फिर आँचल में छुपना चाहा,
ममता की धरा मैं बहना, और अमृत को पीना चाहा,
बाबा का हाथ सर पर, और अभिमान से जीना चाहा ।
पर बेखबर थे जिस सच से, दुनिया ने हमें उससे मिलाना चाहा
बस... एक लफ्ज , और जिंदगी ने खुद को कोसना चाहा
जब "अनाथ" कहकर, सबने हमारा दिल दुखाया,
जाने क्यूँ हमें इतना रुलाया, फिर इस दिल ने खुद को तनहा पाया...
और खुद से रूठकर बस...
बस... ख़ामोश रहना चाहा ।
लफ्ज न थे जुबान पर, तो बस आँखों ने ही कुछ समजना चाहा ।
नन्हे हाथों ने उंगली थाम चलना चाहा,
नाजुक कदमो ने आगे बढ़ाना चाहा,
रो-रो कर जिद को मनवाना चाहा,
माँ के हाथों से निवाला और बाबा का दुलार चाहा,
बस अपने लिए छोटा-सा आशियाना चाहा ।
पलको ने छुप-छुप कर सब कुछ कहना चाहा,फिर ना समझ दिल को समझाना चाहा,आंसू पोछ कर मुस्कुराना चाहा,कभी मन मार कर सिसक-सिसक कर रोना चाहा,बस माँ की ममता और बाबा का दुलार चाहा ।
लोरी सुन रातों को सोना चाहा,
गलतियों पर फटकार, फिर आँचल में छुपना चाहा,
ममता की धरा मैं बहना, और अमृत को पीना चाहा,
बाबा का हाथ सर पर, और अभिमान से जीना चाहा ।
उस अहसास को पाना चाहा,
जन्नत मैं जीना चाहा,
खुद को महफूज रखना चाहा,
रूठी माँ को मनाना चाहा,
बाबा के लिए कुछ बनना चाहा ।
पर बेखबर थे जिस सच से, दुनिया ने हमें उससे मिलाना चाहा
बस... एक लफ्ज , और जिंदगी ने खुद को कोसना चाहा
जब "अनाथ" कहकर, सबने हमारा दिल दुखाया,
जाने क्यूँ हमें इतना रुलाया, फिर इस दिल ने खुद को तनहा पाया...
और खुद से रूठकर बस...
बस... ख़ामोश रहना चाहा ।
- by पूनम चौधरी, नासिक
(या कवितेला "Rainbow Youth Festival 2012" मध्ये "First Prize" मिळाले होते। )