Jayesh Gujrati's Blog (in Marathi)

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Friday, March 01, 2013

तू बरोबर असतोस तेव्हा...

तू बरोबर असतोस तेव्हा,
खूप खूप बोलावसं वाटत, नाहीतर फक्त गप्प रहावस वाटत…

तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुलाच पाहावस वाटत, नाहीतर डोळे मिटून शांत बसावस वाटत…
 

 

तू बरोबर असतोस तेव्हा,
खूप खूप हसावसं वाटत,  नाहीतर उदास रहावस वाटत…
 

तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुझ्याच समोर रडावस वाटत, नाहीतर मनात सगळं दुखं, दाबून ठेवावस वाटत…
 

तू बरोबर असतोस तेव्हा,
तुझ्याबरोबर पावसात भिजावस वाटत, नाहीतर खिडकीतूनच, पडता पाऊस पाहावस वाटत…
 


तू बरोबर असतोस तेव्हा,
जगावसं वाटत, नाहीतर जग सोडून जावस वाटत…
 

तू बरोबर असतोस तेव्हा,
फक्त तुझ्या बरोबरच रहावस वाटत, नाहीतर फक्त तुलाच आठवावस  वाटत…
 

नाहीतर फक्त तुलाच......
                                            आठवावस वाटत…


by unknown

(Note: Video added to this blog, expecting your comments on this, so I'll continue adding Videos to my next blogs)
 

Tuesday, February 26, 2013

माँ...


एक माँ थी जिसका एक लड़का था, बाप मर चुका था। माँ घरो में बर्तन मांजती थी बेटे को अपना पेट काटकर एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाती थी। एक दिन स्कूल में किसी बच्चे ने उसके लड़के के आँख में पेंसिल मार दी, लड़के की आँख चली गई। डाक्टर ने कहा ये आँख नहीं बचेगी दूसरी लगेगी। तो माँ ने अपने कलेजे के टुकड़े के लिए अपनी एक आँख दे दी। 


अब वो देखने में भी अच्छी नहीं थी। बेटा उसको स्कूल आने को मना करता था क्योंकि वो देखने में अच्छी और पढ़ी लिखी नहीं थी ऊपर से एक आँख भी नहीं रही, उसे अपनी माँ पर शर्म आती थी, कभी लंच बॉक्स देने आती भी थी तो मुह छुपा कर और अपने को नौकरानी बताती थी। अपने बच्चे की ख्वाइश पूरी करने को वो दिन रात काम करती लेकिन बेटे को कमी महसूस नहीं होने देती।

बेटा जवान हुआ, एक  सरकारी अधिकारी बना उसने लव मैरिज की। उसने अपनी माँ को भी नहीं बुलाया और अलग घर ले बीबी के साथ रहने लगा माँ बूढी हो रही थी बीमार भी रहने लगी। लेकिन लड़का अपनी पत्नी और हाई सोसाइटी में व्यस्त रहने लगा उसे माँ की याद भी नहीं आती थी।
 

माँ बीमार रहती लेकिन दिन रात अपने पुत्र की सम्रद्धि और उन्नति के लिए भगवान् से दुआ  मांगती रहती कुछ पडोसी माँ का ख्याल रखते। एक बार वो बहुत बीमार पड़ी तो उसने अपने बेटे को देखने की इच्छा जाहिर की लोग लड़के को बुलाने गए तो, वो अपनी बीबी के साथ कहीं टूर पे घुमने जा रहा था वो नहीं आया उसने कुछ पैसे इलाज़ के लिए भेज दिए, लेकिन माँ का इलाज़ तो उसका बेटा था जिसको मरने से पहले देखना चाहती थी उसे प्यार देना चाहती थी, वो फिर भी बेटे का इन्तेजार करती रही, उसके कलेजे का टुकड़ा उसके आशाओं के टुकड़े कर रहा था। 

वो आया लेकिन तब तक माँ मर चुकी थी उसके हाथ में एक फोटो था लड़के का वही बचपन की स्कूल ड्रेस बाला फोटो धुन्दला गन्दा सा जिसे हर वक्त सीने से लगाये रहती थी, आज भी सीने से लगाये थी, लेकिन मरते दम तक वो अपने कलेजे के टुकड़े को कलेजे से न लगा सकी।

दिन बीते वक्त बदला लड़के का कार से एक्सिडेंट हुआ इस एक्सिडेंट में उसकी दोनों आँख चली गई चेहरे पर चोट लगने से कुरूप लगने लगा दोनों पैर बेकार हो गए चलने में लचार हो गया। पत्नी अमीर घर की लड़की थी, वो दिनों दिन पति से दूर होने लगी क्योंकि पति अब भद्दा और विकलांग था, और एक दिन वो पति को छोड़ कर चली गई। 

तब बेटे को माँ की याद आयी ,की कैसे उसने अपने बेटे के लिए अपनी एक आँख दे दी जीवन के आखरी समय तक वो उसकी फोटो को सीने से लगाये रही, और वो उसको अपनी पत्नी और हाई सोसाइटी के लिए माँ को याद भी नहीं करता था आज ईश्वर ने उसे बता दिया की माँ का प्यार असीम होता है, निस्वार्थ होता है, दुनिया में उससे ज्यादा प्यार करने बाला कोई नहीं ,वो लेटे लेटे यही सोंच रहा था और रो रहा था की ईश्वर ने शायद माँ के प्यार की क़द्र न करने की सजा दी लेकिन शायद माँ स्वर्ग में भी उसकी इस हालत को देख तड़प उठी होगी 

"माँ" जीवन का अनमोल और निस्वार्थ प्यार है किसी और के प्यार के लिए उसे मत ठुकराना।

 

Friday, February 22, 2013

"अनाथ"

यहीं कहीं, कहीं गहरे सन्नाटे में, ख़ामोश निगाहों ने कुछ कहना चाहा 
लफ्ज न थे जुबान पर, तो बस आँखों  ने ही कुछ समजना चाहा । 

नन्हे हाथों ने उंगली थाम चलना चाहा
नाजुक कदमो ने आगे बढ़ाना चाहा,
रो-रो कर जिद को मनवाना चाहा,  
माँ के हाथों से निवाला और बाबा का दुलार चाहा,
बस अपने लिए छोटा-सा आशियाना चाहा । 

 
पलको ने छुप-छुप कर सब कुछ कहना चाहा,
फिर ना समझ दिल को समझाना चाहा,
आंसू पोछ कर मुस्कुराना चाहा,
कभी मन मार कर सिसक-सिसक कर रोना चाहा,
बस माँ की ममता और बाबा का दुलार चाहा । 

लोरी सुन रातों को सोना चाहा,
गलतियों पर फटकार, फिर आँचल में छुपना  चाहा,
 ममता की धरा मैं बहना, और अमृत को पीना चाहा,
बाबा का हाथ सर पर, और अभिमान से जीना  चाहा । 

उस अहसास को पाना चाहा,
जन्नत मैं जीना चाहा,
खुद को महफूज रखना चाहा,
रूठी माँ को मनाना चाहा,
बाबा के लिए कुछ बनना चाहा । 

पर बेखबर थे जिस सच से, दुनिया ने हमें उससे मिलाना चाहा 
बस... एक लफ्ज , और जिंदगी ने खुद को कोसना चाहा 
जब "अनाथ" कहकर, सबने हमारा दिल दुखाया
जाने क्यूँ हमें इतना रुलाया, फिर इस दिल ने खुद को तनहा पाया...
और खुद से रूठकर  बस...
बस...  ख़ामोश रहना चाहा । 



- by पूनम चौधरी, नासिक 
(या कवितेला "Rainbow Youth Festival 2012" मध्ये "First Prize" मिळाले होते। ) 


 

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